घर में 2 वक्त का खाना नहीं था, आज हजारों के दुख दूर करते हैं SURENDRA SINGH IAS

Success and struggle story of surendra Singh IAS uttar Pradesh

एक वक्त ऐसा भी था जब घर मं 2 वक्त का खाना नहीं होता था। किसान दंपत्ति और उनके 2 बेटे कई बार रात को बिना भोजन किए ही सो जाते थे परंतु आज उसी परिवार का सबसे छोटा बेटा सुरेन्द्र सिंह यूपी कॉडर का आईएएस अफसर है। जिलाधिकारी रहते हुए अब वो हजारों गरीबों के दुख दूर करते हैं। उनकी यह सफलता पूरे परिवार के साझा परिश्रम का परिणाम है। उनकी पत्नी भी उन्हे सपोर्ट करती है।

SURENDRA SINGH IAS- मेरी पढ़ाई पेरेंट्स के लिए काफी मायने रखती 

मथुरा जिले के सैदपुर गांव के रहने वाले सुरेन्द्र सिंह के पिता हरी सिंह किसान थे। खेती ही फैमिली की आय का मुख्य जरिया था। सुरेंद्र कहते हैं, शुरुआती दौर में परेशानियां कुछ ज्यादा थीं। गांव के प्राथमिक स्कूल में मेरी शुरुआती पढ़ाई हुई। मैं रोज देखता था कि मुझे स्कूल जाते देख पैरेंट्स की आंखों में एक अजीब सी ललक रहती थी। वो ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन मेरी पढ़ाई उनके लिए काफी मायने रखती थी। यह बात मैं बचपन से ही महसूस करने लगा था।

मेरे फैमिली की आय का मुख्य जरिया खेती ही था। मैं अक्सर स्कूल से आने के बाद खेतों में पहुंच जाता और पिता जी का काम में हाथ बंटाता। हालांकि, वो मुझे काम करने से मना कर देते थे, क्योंकि वो चाहते थे कि मेरा ध्यान कभी पढ़ाई से न भटके। मैं 8वीं क्लास तक गांव के ही स्कूल में पढ़ा।

SURENDRA SINGH IAS- हमेशा यही ख्याल आता पिता जी का सपना अधूरा है

पढ़ाई के दौरान मैं कई गवर्मेंट जॉब के लिए एग्जाम देता रहता था। इस बीच मेरा सिलेक्शन एयरफोर्स में हो गया। वहां ज्वाइन करने से पहले ही मेरा सिलेक्शन ONGC में जियोलॉजिस्ट के पद पर हो गया। मैं ONGC में नौकरी तो करने लगा था, लेकिन दिल में हमेशा यही ख्याल आता कि शायद अभी पिता जी का सपना अधूरा है। मैंने 3 बार PCS का एग्जाम क्वालीफाई किया, लेकिन ज्वाइन नहीं किया। क्योंकि दिल में IAS बनने का ख्वाब था। साल 2005 में IAS क्वालीफाई किया, देश में 21वीं रैंक हासिल की।

करीब 10 साल पहले सुरेन्द्र सिंह की शादी मेरठ की गरिमा से हुई थी। इनकी 2 बेटियों हैं। सुरेन्द्र कहते हैं, डीएम के पद पर काफी सारी जिम्मेदारियां होती हैं, जिसमे कभी-कभी फैमिली और बच्चों के लिए भी टाइम निकालना मुश्किल हो जाता है लेकिन पत्नी का पूरा सहयोग रहता है, जिसकी वजह से मैं समाज के लिए बेहतर काम कर पा रहा हूं। सुरेन्द्र छोटे से गांव से निकलकर भले ही IAS बन गए हों, लेकिन आज भी उन्हें मिट्टी के चूल्हे की बनी रोटियां सबसे ज्यादा पसंद है।

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